Thursday, October 20, 2011

कहकशां.....

1 जब तक ऊंची ना हो ज़मीर की लौ 
आँख को रौशनी नहीं मिलाती [Firaq Gorakhpuri]

2 हमारा नाम भी लेंगे वो लेकिन
हमारा ज़िक्र सबके बाद होगा

3 लाजिम था की देखो मेरा रास्ता कोई दिन और तनहा गए क्यों अब रहो तनहा कोई दिन और (मिर्ज़ा ग़ालिब)

4 इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां नहीं है [Mustafa Zaidi]

5 मुद्दतों बिछड़े रहे फिर भी गले तो मिल लिए हम को शर्म आई तो क्या उनको हिजाब आया तो क्या

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